भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रंग अँधेरे में / सुभाष काक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष काक |संग्रह=मिट्टी का अनुराग / सुभाष काक }}<po...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:19, 10 नवम्बर 2008 का अवतरण
क्या वसंत का
नृत्य इतना सुंदर है‚
कि तुम इसके रंग
रात में भी
बता सकती हो?
क्या तुम
मिट्टी की गंध
वापस बुला सकते हो?
जंगल में पेड़ों की भास
इतनी मादक है
मुझे भय है
मैं अगला श्वास लेना भूल न जाऊँ।
वसंत के रंग
पहाड़ियों के मध्य
घाटी में फैल गए।
आकाश की तनी हुई चादर की थरथराहट
से मेरा शरीर काँप उठा
हृदय जिसने
प्रेम किया है
भूल नहीं सकता।