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"वीर तुम बढ़े चलो / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी" के अवतरणों में अंतर

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वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 
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हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे  
 
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ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी स्र्के नहीं  
 
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वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 
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सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो  
 
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तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं  
 
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वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 
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प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ  हो
 
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सूर्य  से बढे  चलो चन्द्र  से बढे  चलो
 
सूर्य  से बढे  चलो चन्द्र  से बढे  चलो
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वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 
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एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए
 
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मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये
 
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वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 
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अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा
 
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यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो
 
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो
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वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
 
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
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-द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
 
-द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

18:34, 10 अगस्त 2006 का अवतरण

कवि: द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

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वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !


हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे

ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी स्र्के नहीं

वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !


सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो

तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं

वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !


प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो

सूर्य से बढे चलो चन्द्र से बढे चलो

वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !


एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए

मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये

वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !


अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा

यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो

वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !

-द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी