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21:35, 10 नवम्बर 2008 का अवतरण

ज़मीन छीन लेना ही, अहम काम !
बेघर करना ही, अहम काम !
चलो गर्दनिया देकर खदेड़ दो,
उसके बाद खड़े करो,
हमारी छाती पर,
ऊँचे-ऊँचे उद्योग ! उद्धत समाज !

साथ में कुछेक पुलिस का होना, ज़रूरी है
वर्ना कैसे छल-बल से,
मुझे 'बाहरी आदमी' कहकर
मेरी हड्डी-पसली तोड़ेंगे, भइये?

आज से यही है गणतंत्र !
आज से यही है गणतंत्र !

बांग्ला से अनुवाद : सुशील गुप्ता