भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शब्द / रसूल हम्ज़ातव / सुरेश सलिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसूल हम्ज़ातव |अनुवादक=सुरेश सलि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
<poem>
 
<poem>
 
टोह में नहीं रहता मैं किसी शब्द की
 
टोह में नहीं रहता मैं किसी शब्द की
कि वह आए और लिख लिख जाए
+
कि वह आए और लिख - लिख जाए
मर्ज़ी जब होगी तब आएगा
+
            मर्ज़ी जब होगी तब आएगा
कोई भी रोक नहीं पाएगा
+
            कोई भी रोक नहीं पाएगा
अदबदा कर आंसू ज्यूँ आँख से छलक आए ।
+
अदबदा कर आँसू ज्यूँ आँख से छलक आए ।
  
 
यक्-ब-यक् आ उतरेगा वर्क़े पर
 
यक्-ब-यक् आ उतरेगा वर्क़े पर

07:54, 11 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण

टोह में नहीं रहता मैं किसी शब्द की
कि वह आए और लिख - लिख जाए
             मर्ज़ी जब होगी तब आएगा —
             कोई भी रोक नहीं पाएगा —
अदबदा कर आँसू ज्यूँ आँख से छलक आए ।

यक्-ब-यक् आ उतरेगा वर्क़े पर
जैसे अगले ज़माने का कोई दोस्त
बिना इत्तिला के आ खड़ा हो दर पर

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल