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"इतिहासांत / कैलाश वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

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09:50, 18 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण

एक पर एक पर एक
सारे आकर्षण मरते चले गए
हम जिन्हें दर्द का अभिमान था
भद्दी दिनचर्या से
अपने क़ीमती घाव
भरते चले गए

हमारा सब अनिर्णीत छूट गया
उस नक्षत्र की
तरह जो-
भरी दोपहर में टूट गया