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"नील कुवलय-से नयन /रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

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डूबे मदिर
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और गहरी झील -सा
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अपना यह मन ।
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भोर की स्वर्ण किरनें
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लगीं मुख चूमने,
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आज फिर भी
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ये नयन हैं अनमने।
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कई जन्मों से जुड़ीं
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अनवरत आचमन ।
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मिला हमें
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तो फिर मिलेंगे ,
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फिर-फिर खिलेंगे।
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अभी तक
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उर यह आकुल
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मृदु  स्पर्श
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तरल स्मित की चितवन।
  
  
 
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22:12, 22 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण

नील कुवलय -से
तुम्हारे
ये अधमुँदे नयन
कितने पावन
बुनते सपन।
डूबे मदिर
कल्पना के रंग में
और गहरी झील -सा
अपना यह मन ।

भोर की स्वर्ण किरनें
लगीं मुख चूमने,
आज फिर भी
ये नयन हैं अनमने।

लहर -सुधियाँ
कई जन्मों से जुड़ीं
रूप का कर रही
अनवरत आचमन ।

फिर जनम
मिला हमें
तो फिर मिलेंगे ,
अधखिले ये कमल
फिर-फिर खिलेंगे।

भूल नहीं पाया
अभी तक
उर यह आकुल
मृदु स्पर्श
तरल स्मित की चितवन।