भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"देखो / विपिनकुमार अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिनकुमार अग्रवाल |संग्रह= }} <Poem> तट है जैसा होत...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
01:40, 12 नवम्बर 2008 का अवतरण
तट है जैसा
होता है समुद्र का
पाँव
छोड़ते थे जो चिन्ह
रेत पर
डूब गए हैं गहरे
यह
किनारे पर
आई लहरें
किन गतियों की
पहचान है।
यह गली वैसी
जैसी किसी शहर की
मटियाली हवा में
तैरती मछलियाँ
जुड़वाँ
ढूंढ़ती हैं
आज भी
पीले पत्तों में नवीन पल्लव
नग से जड़ी
राजा की अंगूठी