भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अधर-सुगन्ध / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
छलक | छलक | ||
मधुर चितवन चंचल । | मधुर चितवन चंचल । | ||
− | + | (12-6-1983) | |
</poem> | </poem> |
08:10, 11 जनवरी 2023 के समय का अवतरण
बादलों को चीरकर
सलज्ज कुमुदिनी-सी
लगी
आँख चाँद की सजल ।
डुबोकर पोर-पोर
दिगन्त का हर छोर
हुआ
हृदय की तरह तरल ।
अधर-सुगन्ध पीकर
प्रीति की रीति बने
छलक
मधुर चितवन चंचल ।
(12-6-1983)