"एक नए सवेरे की तलाश / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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चोटी फतह करने को।''' | चोटी फतह करने को।''' | ||
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+ | मराठी अनुवाद: डॉ. सुरेन्द्र हरिभाऊ बोडखे''' | ||
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+ | वेगळे व्हायचे होते स्वप्नांपासून; | ||
+ | जीवनात अश्रू विरघळले होते | ||
+ | जसे- दारू मध्ये बर्फाचे तुकडे; | ||
+ | पण कदाचित तिला हरायच नव्हतं. | ||
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+ | त्या शांतशा दिसणाऱ्या मुलीने | ||
+ | निमूटपणे पुन्हा उचलली | ||
+ | कुबडी - तुटलेल्या स्वप्नांची, | ||
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+ | अपेक्षा आणि आशेला आवाज दिला | ||
+ | आणि चालून गेली डोंगराच्या वाटेवर | ||
+ | एका नवीन पहाटेच्या शोधात | ||
+ | जरी तिला माहित नव्हतं | ||
+ | अजून किती चालायचे आहे? | ||
+ | शिखर सर करण्यासाठी. | ||
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20:06, 30 जनवरी 2023 के समय का अवतरण
बहुत परेशान था मन,
शिथिल होकर
लड़खड़ा गया था।
अलगाव चाहता था सपनों से;
आँसू जिन्दगी में घुल चुके थे
जैसे- शराब में बर्फ की डली;
लेकिन शायद उसे हारना नहीं था।
उस शान्त-सी दिखने वाली लड़की ने
फिर से चुपचाप उठाई;
बैशाखी- टूटते हुए सपनों की,
अपेक्षा और आशा को आवाज़ दी
और चल पड़ी पहाड़ी पगडंडी पर
एक नए सवेरे की तलाश में
जबकि नहीं जानती वह
कितना चलना होगा अभी?
चोटी फतह करने को।
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एका नवीन पहाटेच्या शोधात
मराठी अनुवाद: डॉ. सुरेन्द्र हरिभाऊ बोडखे
खूप अस्वस्थ होते मन,
सुस्त होउन
डळमळून गेले होते.
वेगळे व्हायचे होते स्वप्नांपासून;
जीवनात अश्रू विरघळले होते
जसे- दारू मध्ये बर्फाचे तुकडे;
पण कदाचित तिला हरायच नव्हतं.
त्या शांतशा दिसणाऱ्या मुलीने
निमूटपणे पुन्हा उचलली
कुबडी - तुटलेल्या स्वप्नांची,
अपेक्षा आणि आशेला आवाज दिला
आणि चालून गेली डोंगराच्या वाटेवर
एका नवीन पहाटेच्या शोधात
जरी तिला माहित नव्हतं
अजून किती चालायचे आहे?
शिखर सर करण्यासाठी.
-0-