भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक रजैया बीवी-बच्चे / रामकुमार कृषक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 29: पंक्ति 29:
 
राई के परबत-से लगते
 
राई के परबत-से लगते
 
छोटे-छोटे भै !
 
छोटे-छोटे भै !
</poem>
 
 
 
  
 
(रचनाकाल : 01.11.1978)
 
(रचनाकाल : 01.11.1978)
 +
</poem>

22:29, 10 फ़रवरी 2023 के समय का अवतरण

एक रजैया बीवी-बच्चे
एक रजैया मैं
खटते हुए ज़िन्दगी बोली —
हो गया हुलिया टैं

जब से आया शहर
गाँव को बड़े-बड़े अफ़सोस
माँ-बहनें-परिवार घेर-घर लगते सौ-सौ कोस
सड़कों पर चढ़ / पगडण्डी की
बोल न पाया जै

बनकर बाबू बुझे
न जाने कहाँ गई वो आग
कूद-कबड्डी गिल्ली-बल्ला कजली-होली-फाग
आल्हा-ऊदल भूले / भूली
रामायन बरवै

पढ़ना-लिखना निखद
निखद या पढ़े-लिखों का सोच
गाँव शहर आकर हो जाता कितना-कितना पोच
राई के परबत-से लगते
छोटे-छोटे भै !

(रचनाकाल : 01.11.1978)