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"स्वरों की दुनिया / कुमार कृष्ण" के अवतरणों में अंतर

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23:27, 22 फ़रवरी 2023 के समय का अवतरण

जब पहली बार आया इस धरती पर अ
अपने साथ लेकर आया होगा-
अन्याय, अत्याचार, अपराध और अवसाद के साथ
अक़्ल और अकराल
आदमी को आदमी बनाने के लिए
आ ने आरम्भ की होगी आस्था की पाठशाला
पढ़ाया होगा आग और राग का पाठ
आटा-दाल का गणित समझने में
बीत गई आ की पूरी उम्र
इ ने सोचा होगा पहली बार
इज्जत, इस्तकबाल के बारे में
बड़ी ई लेकर आई होगी किसी स्वर्ग से
अपने कंधों पर उठा कर
भारी भरकम विशालकाय ईश्वर
उम्मीद की तितलियाँ सपने में देखते-देखते
नींद से उठा होगा उ
उकसाया होगा उसी ने पहली बार
किसी को उधार लेने के लिए
उदास क्षणों में जब उड़ कर गया होगा छोटा उ
अपने बड़े भाई के पास
तब उसी ने समझाया होगा ऊँच-नीच का भेद
छोटे-बड़े दोनों भाइयों ने मिलकर
मनुष्य को दी होगी ऊब से उबरने की ऊर्जा
एषणा और एहसान लेकर आई होगी ए
पहुँची होगी ऐ के घर
तब मिलकर सोचा होगा दोनों ने
ऐश्वर्य और ऐयाशी के बारे में
ओ अपने साथ लेकर तो आया था ओज
उसकी ओजस्विता ओझल हो गई-
ओछी दुनिया में
औ ने गुजार दी पूरी उम्र औलाद की परवरिश में
अकेले क्या है उसकी औकात
एक औरत ने समझा दी औ को परिवार की परिभाषा
तब से अंगारों पर चल रहा है इस धरती पर
अं अः का पूरा परिवार
अंगीठी पर भूख पकाते देख रहा है अंजोरी सुबह।