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"मैंने उम्र गुज़ार दी.. / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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मम पुप्फपीती इतासीच्च यद | मम पुप्फपीती इतासीच्च यद | ||
हिरिद्दीभूमीसिच्चने अहमायू अतीता । | हिरिद्दीभूमीसिच्चने अहमायू अतीता । | ||
− | मितानी पुप्फानी रदनञ्किता ये अत्तमीसम कथयनुद्दानपालक इति कथयन्ती । | + | मितानी पुप्फानी रदनञ्किता |
+ | ये अत्तमीसम कथयनुद्दानपालक इति कथयन्ती । | ||
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06:40, 23 फ़रवरी 2023 का अवतरण
बिल्कुल आसान था
नागफनी उगाना
मगर मैं न उगा सकी।
मेहनत का काम था;
फूल उगाना
मगर क्या करूँ ?
मुझे फूलों से प्यार इस क़दर था
कि दिल की ज़मीं सींचने में
मैंने उम्र गुज़ार दी।
मुस्काते फूलों को रौंदकर
वे ख़ुद को बागवान कहते रहे।
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पाली अनुवाद:अहमायू अतीता
रचनाकार :डॉ॰ कविता भट्ट: शैलपुत्रीय:
अनुवादक:राम प्रताप सिंह
अतिस्सरलमासीच्च
नग्गफनीयम वरधियम
परमहम वरधितुम नासक्कम
परिसमस्स कारमासीच्च पुप्फवरुधम।
किञ्करन्नानि परम ।
मम पुप्फपीती इतासीच्च यद
हिरिद्दीभूमीसिच्चने अहमायू अतीता ।
मितानी पुप्फानी रदनञ्किता
ये अत्तमीसम कथयनुद्दानपालक इति कथयन्ती ।
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