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"राजा की किताब / कुमार कृष्ण" के अवतरणों में अंतर

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13:54, 24 फ़रवरी 2023 के समय का अवतरण

जब-जब उतरती है राजा की किताब
चमकीले पंखों के साथ
चुंधिया जाती हैं
धरती के शब्दों की आँखें
सुन्न हो जाते हैं उनके पाँव उनके हाथ
सूखने लगते हैं वे तमाम खेत
जहाँ लगातार बोते रहे शब्द
अपने पसीने से फसल
बौना हो जाता है धरती का सच
राजा की किताब के सामने
सदियों से खेला जा रहा है यह खेल
इस खेल में शामिल हैं-
दुनिया के तमाम राजा।