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"औरतें / कल्पना मिश्रा" के अवतरणों में अंतर

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18:39, 27 फ़रवरी 2023 के समय का अवतरण

माँ तुम कहती थी
औरतें दुनिया को सुंदर बनाती हैं,
औरतें खुद को, घर को,
दुनिया को सजाती हैं।
पर कोई और आकर बिखेर देता है
उनकी सजी सँवरी दुनिया को
फिर वे नही समेट पाती अपनी टूटी हिम्मत तक
संसार लड़की के आजाद ख्यालों से डरता है
हँसती मुस्कुराती खिलखिलाती लड़की
चुभने लगती है आँखो में
लड़की के बढ़ने से पढ़ने से
नए सपने गढ़ने से
बेस्वाद हो जाता है
आधी दुनिया के मुँह का स्वाद
फिर किसी अंधेरी रात में
सुनसान इलाके में
दबोच ली जाती है लड़की की अस्मिता
कतर दिए जाते है उसके पर
डाल दी जाती हैं बेड़ियाँ
उसके सपनों और कल्पनाओं में
फिर इस दुनिया की खूबसूरती
खो जाती है और
रह जाता है एक
बदसूरत सा दाग उसके मन में
जिसे वो फिर मिटा देती है
अगर साथ हो अपनों का
वो फिर दुनिया सजा देती है
वो फिर मुस्कुराती है।