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"हर रोज / राहुल द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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18:09, 28 फ़रवरी 2023 के समय का अवतरण

सोचता था कि
मैं भी
लिखुंगा कुछ नया सा
हर सुबह
कि सुबह की सुनहली धूप
घास पर बिखरे मोती
मैं भी निहारूँगा
अपनी नजर से
हर रोज

पर...
हर रोज एक कविता?
हो न सका
कमबख्त!
महीनों हो गए
कुछ सोचे हुए
कुछ लिखे हुए
मैं
विचारशून्यता को
जी रहा हूँ अब

समय के साथ साथ!