भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रामरसोई / अजन्ता देव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजन्ता देव |संग्रह= }} <Poem> तुम्हारी जिह्वा ठाँव-क...)
(कोई अंतर नहीं)

22:46, 13 नवम्बर 2008 का अवतरण

तुम्हारी जिह्वा
ठाँव-कुठाँव टपकाती है लार
इसे काबू करना तुम्हारे वश में कहाँ
तुमने चख लिया है हर रंग का लहू

परन्तु एक बार आओ
मेरी रामरसोई में
अग्नि केवल तुम्हारे जठर में नहीं
मेरे चूल्हे में भी है

यह पृथ्वी स्वयं हांडी बनकर
खदबदा रही है

केवल द्रौपदियों को ही मिलती है
यह हांडी
पाँच पतियों के परमसखा से ।