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"गूँगे-बहरे बने रहें मंज़़ूर नहीं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | + | गूंगे - बहरे बन जाएँ मंज़ूर नहीं | |
− | गिरवी हो लेखनी हमें | + | गिरवी हो लेखनी हमें मंज़ूर नहीं |
सत्ता से हम टक्कर लेते आये हैं | सत्ता से हम टक्कर लेते आये हैं | ||
− | हम दरबारी ग़ज़ल कहें | + | हम दरबारी ग़ज़ल कहें मंज़ूर नहीं |
− | + | जो होगा , सो होगा देखा जायेगा | |
− | + | सच से डरकर हम भागें मंज़ूर नहीं | |
सेाने की भी जाँच कसौटी पर होती | सेाने की भी जाँच कसौटी पर होती | ||
− | हम हर बात पे हाँ बोलें | + | हम हर बात पे हाँ बोलें मंज़ूर नहीं |
− | अच्छे दिन | + | अच्छे दिन की खातिर जाँ भी हाज़िर है |
− | + | अंधे कूप में डूब मरें मंज़ूर नहीं | |
− | अश्कों से भी दिल के | + | अश्कों से भी दिल के दीप जला सकते |
− | अँधियारे में पड़े रहें | + | अँधियारे में पड़े रहें मंज़ूर नहीं |
हम बोंलेंगे तभी ज़माना बोलेगा | हम बोंलेंगे तभी ज़माना बोलेगा | ||
− | इंतेज़ार अब और करें | + | इंतेज़ार अब और करें मंज़ूर नहीं |
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+ | ये हालात बदलने ही होंगे यारो | ||
+ | और करें अब देर हमें मंज़ूर नहीं | ||
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09:55, 2 जून 2023 के समय का अवतरण
गूंगे - बहरे बन जाएँ मंज़ूर नहीं
गिरवी हो लेखनी हमें मंज़ूर नहीं
सत्ता से हम टक्कर लेते आये हैं
हम दरबारी ग़ज़ल कहें मंज़ूर नहीं
जो होगा , सो होगा देखा जायेगा
सच से डरकर हम भागें मंज़ूर नहीं
सेाने की भी जाँच कसौटी पर होती
हम हर बात पे हाँ बोलें मंज़ूर नहीं
अच्छे दिन की खातिर जाँ भी हाज़िर है
अंधे कूप में डूब मरें मंज़ूर नहीं
अश्कों से भी दिल के दीप जला सकते
अँधियारे में पड़े रहें मंज़ूर नहीं
हम बोंलेंगे तभी ज़माना बोलेगा
इंतेज़ार अब और करें मंज़ूर नहीं
ये हालात बदलने ही होंगे यारो
और करें अब देर हमें मंज़ूर नहीं