भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तीन झरने / अलेक्सान्दर पूश्किन / वरयाम सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अलेक्सान्दर पूश्किन |अनुवादक=वर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
 
'''मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
 
'''मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
 
 
 +
'''लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए'''
 +
          Александр Пушкин
 +
                Три ключа
 +
 +
В степи мирской, печальной и безбрежной,
 +
Таинственно пробились три ключа:
 +
Ключ юности, ключ быстрый и мятежный,
 +
Кипит, бежит, сверкая и журча.
 +
Кастальский ключ волною вдохновенья
 +
В степи мирской изгнанников поит.
 +
Последний ключ — холодный ключ забвенья,
 +
Он слаще всех жар сердца утолит.
 +
 +
1827 г.
 
</poem>
 
</poem>

16:12, 6 जून 2023 के समय का अवतरण

इस संसार के सीमाहीन दुखभरे निर्जन प्रान्तर में
प्रकट हुए हैं रहस्यमय तीन झरने :
यौवन का झरना — फुर्तीला और बेचैन
तेज़ी से बह रहा है उफनता, चमकता ।
दूसरा झरना भरा है काव्य-प्रेरणाओं से
निर्जन प्रान्तर में प्यास बुझाता है निर्वासितों की,
और तीसरा अन्तिम झरना — विस्मृति का
सबसे ज़्यादा मीठा, वही बुझाता है आग हृदय की ।

मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
          Александр Пушкин
                Три ключа

В степи мирской, печальной и безбрежной,
Таинственно пробились три ключа:
Ключ юности, ключ быстрый и мятежный,
Кипит, бежит, сверкая и журча.
Кастальский ключ волною вдохновенья
В степи мирской изгнанников поит.
Последний ключ — холодный ключ забвенья,
Он слаще всех жар сердца утолит.

1827 г.