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"आख़िरी जाम / आन्ना अख़्मातवा / असद ज़ैदी" के अवतरणों में अंतर

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मैंने अपने उजड़े घर के नाम यह जाम उठाया,
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मैं पीती हूंँ हमारे उजड़ चुके घर के नाम
कि मैंने इतना अशुभ अमंगलकारी जीवन पाया ।
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उस बदी के नाम जो कि मेरी ज़िन्दगी रही
साथ-साथ हम जीए अकेलेपन का ये भार ढोते,
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हमारे मुश्तरका अकेलेपन के नाम
तुम्हारे लिए पीती यह जाम, जो तुम पास में होते ।
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और पीती हूँ —
 
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उन फ़रेबी होटों के नाम
झूठ कहा मुझे जिन होठों ने, किया था मुझसे छल,
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जिन्होंने हमसे दग़ा की,
आँखों का वह ठण्डापन ही, बना था तब मक़्तल ।
+
उन ठण्डी मुर्दार आँखों के नाम,
असल बात यह दुनिया रूखी, बर्बर और बेरहम,
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इस हक़ीक़त के नाम कि दुनिया क्रूर और अश्लील है
उस ख़ुदा ने भी नहीं बचाया, बसा जो सबके ज़ेहन ।
+
और यह कि ईश्वर ने हमें नहीं बचाया
  
 
1934
 
1934

22:35, 7 जून 2023 के समय का अवतरण

मैं पीती हूंँ हमारे उजड़ चुके घर के नाम
उस बदी के नाम जो कि मेरी ज़िन्दगी रही
हमारे मुश्तरका अकेलेपन के नाम
और पीती हूँ —
उन फ़रेबी होटों के नाम
जिन्होंने हमसे दग़ा की,
उन ठण्डी मुर्दार आँखों के नाम,
इस हक़ीक़त के नाम कि दुनिया क्रूर और अश्लील है
और यह कि ईश्वर ने हमें नहीं बचाया

1934

केटी फ़ेरिस और इल्या कामीन्स्की के अँग्रेज़ी अनुवाद से अनूदित : असद ज़ैदी

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी में पढ़िए 
               Анна Ахматова
               Последний тост

Я пью за разорённый дом,
За злую жизнь мою,
За одиночество вдвоём,
И за тебя я пью, —

За ложь меня предавших губ,
За мертвый холод глаз,
За то, что мир жесток и груб,
За то, что Бог не спас.

1934 г.