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"उस रोज़ / अनीता सैनी" के अवतरणों में अंतर

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पहनी थी उमंग की जैकेट
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विश्वास का मफलर
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गले की गर्माहट  बना
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कुछ बेचैनी बाँटना
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चाहती थी तुमसे
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तुम नहीं आए
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रश्मियों ने कहा-
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तुम निकल चुके हो
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अनजान सफ़र पर।
  
 
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00:28, 7 जुलाई 2023 के समय का अवतरण

 उस रोज़
घने कोहरे में
भोर की बेला में
सूरज से पहले
तुम से मिलने
आई थी मैं
लैंपपोस्ट के नीचे
तुम्हारे इंतज़ार में
घंटों बैठी रही
एहसास का गुलदस्ता
दिल में छिपाए
पहनी थी उमंग की जैकेट
विश्वास का मफलर
गले की गर्माहट बना
कुछ बेचैनी बाँटना
चाहती थी तुमसे
तुम नहीं आए
रश्मियों ने कहा-
तुम निकल चुके हो
अनजान सफ़र पर।