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+ | बिखर जाते हैं उसके पिता के सपने | ||
+ | बहते आँसुओं के साथ | ||
+ | सूखने लगता है | ||
+ | माँ की छाती का दूध | ||
+ | बेटी के बोझ से ज़मीन में एक हाथ | ||
+ | धँस जाती हैं उनकी चारपाई | ||
+ | दाई की फूटती नाराज़गी | ||
+ | दायित्व से मुँह मोड़ता परिवार | ||
+ | माँ कोसने लगती हैं | ||
+ | अपनी कोख को | ||
+ | उसके हिस्से की ज़मीन के साथ | ||
+ | छीन ली जाती है भाषा भी | ||
+ | चुप्पी में भर दिए जाते हैं | ||
+ | मन-मुताबिक़ शब्द | ||
+ | सुख-दुख की परिभाषा परिवर्तित कर | ||
+ | जीभ काटकर | ||
+ | रख दी जाती है उसकी हथेली पर | ||
+ | चीख़ने-चिल्लाने के स्वर में उपजे | ||
+ | शब्दों के बदल दिए जाते हैं अर्थ | ||
+ | ता-उम्र ढोई जाती है उनकी भाषा | ||
+ | एक-तरफ़ा प्रेम की तरह। | ||
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00:35, 7 जुलाई 2023 के समय का अवतरण
परग्रही की भांति
धरती पर नहीं समझी जाती
स्त्री की भाषा
भविष्य की संभावनाओं से परे
किलकारी की गूँज के साथ ही
बिखर जाते हैं उसके पिता के सपने
बहते आँसुओं के साथ
सूखने लगता है
माँ की छाती का दूध
बेटी के बोझ से ज़मीन में एक हाथ
धँस जाती हैं उनकी चारपाई
दाई की फूटती नाराज़गी
दायित्व से मुँह मोड़ता परिवार
माँ कोसने लगती हैं
अपनी कोख को
उसके हिस्से की ज़मीन के साथ
छीन ली जाती है भाषा भी
चुप्पी में भर दिए जाते हैं
मन-मुताबिक़ शब्द
सुख-दुख की परिभाषा परिवर्तित कर
जीभ काटकर
रख दी जाती है उसकी हथेली पर
चीख़ने-चिल्लाने के स्वर में उपजे
शब्दों के बदल दिए जाते हैं अर्थ
ता-उम्र ढोई जाती है उनकी भाषा
एक-तरफ़ा प्रेम की तरह।