भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खोल दो / प्रताप सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
					
										
					
					अनिल जनविजय  (चर्चा | योगदान)  (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप सिंह  }}  अनबोली घुटन में पस्त मेरा चेहरा म...)  | 
				अनिल जनविजय  (चर्चा | योगदान)   | 
				||
| पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
अनबोली घुटन में पस्त  | अनबोली घुटन में पस्त  | ||
| + | |||
मेरा चेहरा  | मेरा चेहरा  | ||
| + | |||
मेरा कमरा  | मेरा कमरा  | ||
| + | |||
मेरा दफ़्तर  | मेरा दफ़्तर  | ||
| + | |||
मेरा देश  | मेरा देश  | ||
| + | |||
भीतर कौन है जो हवा को मथ रहा है  | भीतर कौन है जो हवा को मथ रहा है  | ||
| + | |||
भीतर कोई है  | भीतर कोई है  | ||
| + | |||
जो हवा बारूद से  | जो हवा बारूद से  | ||
| + | |||
ज़मीन, खिड़की, सड़क को  | ज़मीन, खिड़की, सड़क को  | ||
| + | |||
आसमान तक ले जाकर  | आसमान तक ले जाकर  | ||
| + | |||
खोल देगा  | खोल देगा  | ||
10:24, 15 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण
अनबोली घुटन में पस्त
मेरा चेहरा
मेरा कमरा
मेरा दफ़्तर
मेरा देश
भीतर कौन है जो हवा को मथ रहा है
भीतर कोई है
जो हवा बारूद से
ज़मीन, खिड़की, सड़क को
आसमान तक ले जाकर
खोल देगा
	
	