भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बीड़ी फूँक फूँक(गीत) / राजकुमारी रश्मि" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
'काम बन्द' की तख़्ती टाँगे | 'काम बन्द' की तख़्ती टाँगे | ||
− | रोज़ | + | रोज़ हुईं हड़तालें, |
उस पर बढ़ती महँगाई ने | उस पर बढ़ती महँगाई ने | ||
पतली कर दी दालें, | पतली कर दी दालें, | ||
पंक्ति 29: | पंक्ति 29: | ||
कई कई दिन उसे कहीं भी | कई कई दिन उसे कहीं भी | ||
मिलती नहीं दिहाड़ी | मिलती नहीं दिहाड़ी | ||
− | दारू भी तो नहीं | + | दारू भी तो नहीं, |
कहाँ दुख बाँटे रामभजन । | कहाँ दुख बाँटे रामभजन । | ||
</poem> | </poem> |
00:52, 26 अगस्त 2023 के समय का अवतरण
बीड़ी फूँक फूँक
दिन अपने
काटे रामभजन ।
तीन माह से मिल वालों से
वेतन नहीं मिला,
कितने घर ऐसे हैं जिनमें
चूल्हा नहीं जला,
आश्वासन की बून्दें कब तक
चाटे रामभजन ।
'काम बन्द' की तख़्ती टाँगे
रोज़ हुईं हड़तालें,
उस पर बढ़ती महँगाई ने
पतली कर दी दालें,
चढ़े हुए करज़े को
कैसे पाटे रामभजन ।
लीडर की बातों मे आकर
मारी पैर कुल्हाड़ी,
कई कई दिन उसे कहीं भी
मिलती नहीं दिहाड़ी
दारू भी तो नहीं,
कहाँ दुख बाँटे रामभजन ।