भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पीठ पर घर / इन्दु जैन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इन्दु जैन |संग्रह=यहाँ कुछ हुआ तो था / इन्दु जैन }} ...)
(कोई अंतर नहीं)

21:50, 16 नवम्बर 2008 का अवतरण


गाँव पर उगा है सूरज
गाँव उससे पहले
जाग चुका

ओस चमक रही है पीली धूप में
कुएँ की जगत पीली है

धोतियाँ भीगे झण्ड़ों-सी
सूखने को तैयार
धुँआ उठता है
सूरज की तरफ़

सदासुहागिन और केसू
पिघलने लगे
खेत चहकने लगे हैं,
बच्चों के पेट में
गुदगुदी मुट्ठी खोलती है
सागवान के पखवाड़े भील पत्ते
सँभाले हैं
कुर्सी की जून तक
पेड़ का वजूद

आदमी घर से निकलता है परेशान
और आश्वस्त
अपनी शाम की तरफ
उसकी पीठ पर
घर खड़ा है।