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"मौसम / इन्दु जैन" के अवतरणों में अंतर
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ये कैसा मौसम है
कि
छाँह देने वाले पेड़
की शहतीरों से
कमरे में ख़ून
टपकने लगा
कि
कविता पुरस्कृत
होते ही
मेरी अपनी नज़रों में
ख़ुद पर प्रश्नचिन्ह
लग गया ।