भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मलबा / सुदीप बनर्जी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदीप बनर्जी |संग्रह=इतने गुमान / सुदीप बनर्जी }...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:27, 17 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण
समतल नहीं होगा कयामत तक
पूरे मुल्क की छाती पर ऐला मलबा
ऊबड़-खाबड़ ही रह जाएगा यह प्रसंग
इबादतगाह की आख़िरी अज़ान
विक्षिप्त अनंत तक पुकारती हुई ।