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पर्वतीय राजा की बेटी
पर्वतीय वन-सी शीतल
गम्भीर गगनचुम्बी पर्वत-सी
सहिष्णुता मेंधरती,माँ हाओबी
मेरी माँ हाओबी
सिर पर लिपटी ओढनी
फेंटा कमर में,नंगे पैर
लांघ पर्वतीय ढलान की कँटीली झडियाँ
पीठ पर लदभारी शम
जाती है धीरे-धीरे चढ़ते हुए
पर्वत की पीठ-दर-पीठ
पार कर जाती है धीरे-धीरे
अनेक पर्वत-श्रॄंखलाएँ ।
सीधी खड़ी चढ़ाई से,अपनी ही चाल में
भर कर पानी, पका कर खाना
दूर, निर्जन कष्टकर पहाड़ी खेत पर
मेड़ से मेड़ तक श्रम-ध्वनि पूर्वक खुदाई के बाद
भंगा, चिल्लाते हुए जंगली सूअर और बंदर
कर पार खड़ी ढलानें
चढ़ती चली जाती है, चढ़ती चली जाती है
करते सामना कष्ट का, पोंछते हुए पसीना आँचल से
मेरी माँ हाओबी
एक दिन पूछा मैंने--
प्यारी पर्वतीय माँ !
तुम्हारी पीठ वाली शम में
है क्या-क्या ?
तुम्हारी पीठ के बोझे में
भरा है क्या क्या
देखूँ तो,माँ, ज़रा
माँ ने 'ले देख' कहते हुए
टेढ़ा कर दिखाया पीठ का बोझा
नहीं उतारी टोकरी पल भर को भी ।
देखा मैंने कुतूहल से, क्या है उस में
था शम में, माँ की उस शम में
माँ का वृद्ध पति
माँ का युवा पुत्र ।
पूछा मैंने विस्मय से--
क्यों माँ ! क्या है यह ?
देखा माँ ने मुझे एक बार
और बोली धीरे से--
मैं न ढोऊँ तो कैसे जीएंगे ये !
और कुछ्न बोली आगे
चली गई पहले की तरह
अपनी गुरु-गम्भीर चाल से
मेरी प्यारी माँ ।
शब्दार्थ : हाओबी=पर्वतीय जनजाति की स्त्री के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला शब्द; शम=पर्वतवासियों द्वारा पीठ पर लादी जाने वाली लम्बी टोकरी।
मणिपुरी से अनुवाद : इबोहल सिंह कांजम