भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बचपन / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
[[Category:बाल-कविताएँ]]
 
[[Category:बाल-कविताएँ]]
  
छीनकर खिलौनो को बाँट दिये गम
+
छीनकर खिलौनो को बाँट दिये गम  
 
+
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम !
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम।।
+
  
 
अच्छी तरह से अभी पढ़ना न आया  
 
अच्छी तरह से अभी पढ़ना न आया  
 
 
कपड़ों को अपने बदलना न आया
 
कपड़ों को अपने बदलना न आया
 +
लाद दिए बस्ते हैं भारी-भरकम
 +
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम!
  
लाद दिए बस्ते हैं भारी-भरकम।
+
अँग्रेजी शब्दों का पढ़ना-पढ़ाना
 
+
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम।।
+
 
+
 
+
अँग्रेजी शब्दों का पढ़ना-पढ़ाना
+
 
+
 
घर आके दिया हुआ काम निबटाना
 
घर आके दिया हुआ काम निबटाना
 
+
होम-वर्क करने में फूल जाय दम
होमवर्क करने में फूल जाये दम।
+
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम!
 
+
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम।।
+
 
+
  
 
देकर के थपकी न माँ मुझे सुलाती
 
देकर के थपकी न माँ मुझे सुलाती
 
 
दादी है अब नहीं कहानियाँ सुनाती
 
दादी है अब नहीं कहानियाँ सुनाती
 
+
बिलख रही कैद बनी, जीवन सरगम
बिलख रही कैद बनी, जीवन सरगम।
+
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम!
 
+
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम।।
+
 
+
  
 
इतने कठिन विषय कि छूटे पसीना  
 
इतने कठिन विषय कि छूटे पसीना  
 
 
रात-दिन किताबों को घोट-घोट पीना
 
रात-दिन किताबों को घोट-घोट पीना
 
+
उस पर भी नम्बर आते हैं बहुत कम
उस पर भी नम्बर आते हैं बहुत कम।
+
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम!
 
+
बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम।।
+
-डॅा. जगदीश व्योम
 
</poem>
 
</poem>

11:08, 30 नवम्बर 2023 के समय का अवतरण

छीनकर खिलौनो को बाँट दिये गम बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम !

अच्छी तरह से अभी पढ़ना न आया कपड़ों को अपने बदलना न आया लाद दिए बस्ते हैं भारी-भरकम बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम!

अँग्रेजी शब्दों का पढ़ना-पढ़ाना घर आके दिया हुआ काम निबटाना होम-वर्क करने में फूल जाय दम बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम!

देकर के थपकी न माँ मुझे सुलाती दादी है अब नहीं कहानियाँ सुनाती बिलख रही कैद बनी, जीवन सरगम बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम!

इतने कठिन विषय कि छूटे पसीना रात-दिन किताबों को घोट-घोट पीना उस पर भी नम्बर आते हैं बहुत कम बचपन से दूर बहुत दूर हुए हम!

-डॅा. जगदीश व्योम </poem>