"बा / ईप्सिता षडंगी / हरेकृष्ण दास" के अवतरणों में अंतर
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धोखेबाज़ी की वह तमाम नौटंकी, | धोखेबाज़ी की वह तमाम नौटंकी, | ||
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अनगिनत बच्चों की बा हो मगर | अनगिनत बच्चों की बा हो मगर | ||
− | सन्तान सुख से कोसों दूर | + | सन्तान सुख से कोसों दूर ! |
− | महात्मा | + | महात्मा के सूरज के तेज के नीचे |
छोटा सा दिया बनकर | छोटा सा दिया बनकर | ||
बुझती चली गईं दिन-ब-दिन तुम । | बुझती चली गईं दिन-ब-दिन तुम । |
07:18, 20 मई 2024 के समय का अवतरण
{{KKCatKavita}
आँखों से छलकती
प्रशान्ति
मन में
ढेर सारा विद्रोह
पहाड़ से मजबूत
अपने व्यक्तित्व में
समेट लिया कैसे
अपने आप को तुमने
बा !
संसार जानो तो अपना यह देश,
अगर घर समझो तो यह सारा भारत,
बच्चे हैं तो यह सारे जग वाले,
शान्ति के शृंगार से झिलमिल
ओ ! कस्तूरबा !
क्या महात्मा ने अपनाया था तुमसे ही
अहिंसा का मंत्र !
तुम्हारा लिखा हुआ हर एक लफ्ज़
लफ्ज़ ही नहीं ,
थे एक-एक अक्षर
खुद से ही अलग हुए ।
सीखा नहीं था तुमने पढ़ना लिखना ।
मगर अपने जीवन- नाटक में
तु्मने निभाए तरह-तरह के किरदार
जो किसी संलाप की भांति
अनगिनत शून्य और विराम चिन्हों से भरे हुए थे ।
क्या तुम्हें मालूम है, बा !
संघ, आदर्श और आश्रम –
मिट जाते है
उनके प्रवर्तक के मौत से !
क्या तुम्हें दिखाई देता है
कहर का वह भयानक रूप,
धोखेबाज़ी की वह तमाम नौटंकी,
रामराज्य के आड़ में ?
अनगिनत बच्चों की बा हो मगर
सन्तान सुख से कोसों दूर !
महात्मा के सूरज के तेज के नीचे
छोटा सा दिया बनकर
बुझती चली गईं दिन-ब-दिन तुम ।
अब जगह जगह पर मूर्तियाँ तुम्हारी
जी करता है देखने को तुम्हारी आँखों में झाँककर –
शायद मिल जाए वहीं
ओस में छुपे अफ़सोस के दो बून्द आँसू ।
ओड़िआ से अनुवाद : हरेकृष्ण दास