भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घास / पाश" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
कुमार मुकुल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: मैं घास हूं मैं आपके हर किए धरे पर उग आउंगा बम फेंक दो चाहे विश्वव...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | मैं घास | + | {{KKGlobal}} |
− | मैं आपके हर किए धरे पर उग | + | {{KKRachna |
+ | |रचनाकार=पाश | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | |||
+ | <Poem> | ||
+ | मैं घास हूँ | ||
+ | मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा | ||
बम फेंक दो चाहे विश्वविद्यालय पर | बम फेंक दो चाहे विश्वविद्यालय पर | ||
बना दो होस्टल को मलबे का ढेर | बना दो होस्टल को मलबे का ढेर | ||
− | सुहागा फिरा दो भले ही हमारी | + | सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर |
मुझे क्या करोगे | मुझे क्या करोगे | ||
− | मैं तो घास | + | मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊंगा |
बंगे को ढेर कर दो | बंगे को ढेर कर दो | ||
संगरूर मिटा डालो | संगरूर मिटा डालो | ||
− | धूल में मिला दो लुधियाना | + | धूल में मिला दो लुधियाना ज़िला |
मेरी हरियाली अपना काम करेगी... | मेरी हरियाली अपना काम करेगी... | ||
दो साल... दस साल बाद | दो साल... दस साल बाद | ||
− | + | सवारियाँ फिर किसी कंडक्टर से पूछेंगी | |
− | यह कौन सी जगह है | + | यह कौन-सी जगह है |
मुझे बरनाला उतार देना | मुझे बरनाला उतार देना | ||
− | + | जहाँ हरे घास का जंगल है | |
− | मैं घास | + | मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूंगा |
− | मैं आपके हर किए धरे पर उग | + | मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा। |
+ | |||
+ | </poem> |
03:33, 22 नवम्बर 2008 का अवतरण
मैं घास हूँ
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा
बम फेंक दो चाहे विश्वविद्यालय पर
बना दो होस्टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
मुझे क्या करोगे
मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊंगा
बंगे को ढेर कर दो
संगरूर मिटा डालो
धूल में मिला दो लुधियाना ज़िला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी...
दो साल... दस साल बाद
सवारियाँ फिर किसी कंडक्टर से पूछेंगी
यह कौन-सी जगह है
मुझे बरनाला उतार देना
जहाँ हरे घास का जंगल है
मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूंगा
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा।