भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुझे डूबना है / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
 
                 मेरा तन-मन तो प्रेम में तापस हुआ।
 
                 मेरा तन-मन तो प्रेम में तापस हुआ।
 
तेरा नाम जपते रहे हम निरंतर,
 
तेरा नाम जपते रहे हम निरंतर,
             '''तू शंकर मेरा, घर पावन-बनारस हुआ।
+
             '''तू शंकर मेरा, घर पावन-बनारस हुआ।'''
'''
+
-0-
 +
ब्रज अनुवाद:
 +
मोमैं बूड़िबैं ह्वैहै/ रश्मि विभा त्रिपाठी
 +
 
 +
बरखा के पानी मैं
 +
कागद की नैया नाँई
 +
नेह तैं पैराइबौ नेह तोरौ
 +
बचन अहै मोरौ
 +
पै बदिबौ जई अहै
 +
तोइ मोमैं बूड़िबैं ह्वैहै
 +
 
 +
कागद जा पै
 +
तोरी भावई लिखी होइ
 +
बाइ जहाज बनाइ
 +
उड़ाइ सकति हौं
 +
नैननि मूँचि तोइ
 +
हर भावई लिखिबैं ह्वैहै
 +
 
 +
तोरे विरुद्ध है रई
 +
कुचालनि के पिठ्ठू
 +
गिराइबे कौ दावा करति हौं
 +
तोइ मोरे हाँथ
 +
बटा गहाइबैं ह्वैहै
 +
 
 +
साइकिल के टायर कौं
 +
डंडा तैं दूरि लौं चलात भए
 +
दौरिबैं अहै- चौरी सड़क पै
 +
संग संग ओ सखा
 +
बदिबौ जई हतु
 +
एक बेरि हमहिं सिसुताई मैं
 +
बहोरि जाइबैं ह्वैहै।
 +
-0-
 +
 
 
<poem>
 
<poem>

08:36, 26 अगस्त 2024 का अवतरण


तम था, विरह था, विवशताएँ थी,
               सोचा था जीवन अमावस हुआ।
बरसों से मन में रखा था छिपाकर,
               अब जाके कहने का साहस हुआ।
तेरे नैनो की गंगा में डुबकी लगाकर,
                 काया कंचन हुई, मन पारस हुआ।
हम पर थे ताने- कि भिक्षुक हैं हम,
                तेरे दर पर झुक, जीवन राजस हुआ।
कुछ बूँदे ,जो निर्मल प्रेम की पा लीं,
                  अभिसिंचित हुए जेठ पावस हुआ।
मैं क्यों कुम्भ जाऊँ, क्यों गंगा नहाऊँ,
              आज सवेरे ही तट से पग वापस हुआ।
पतित पावनी तो भीतर बहे है,
              अद्भुत प्रेम गोते, आदर्श-मानस हुआ।
मुझे डूबना है, तैरना नहीं है,
              अब पार जाने में भारी आलस हुआ।
सुनते थे, प्रेम वासना है तनों की ,
                मेरा तन-मन तो प्रेम में तापस हुआ।
तेरा नाम जपते रहे हम निरंतर,
             तू शंकर मेरा, घर पावन-बनारस हुआ।
-0-
ब्रज अनुवाद:
मोमैं बूड़िबैं ह्वैहै/ रश्मि विभा त्रिपाठी

बरखा के पानी मैं
कागद की नैया नाँई
नेह तैं पैराइबौ नेह तोरौ
बचन अहै मोरौ
पै बदिबौ जई अहै
तोइ मोमैं बूड़िबैं ह्वैहै

कागद जा पै
तोरी भावई लिखी होइ
बाइ जहाज बनाइ
उड़ाइ सकति हौं
नैननि मूँचि तोइ
हर भावई लिखिबैं ह्वैहै

तोरे विरुद्ध है रई
कुचालनि के पिठ्ठू
गिराइबे कौ दावा करति हौं
तोइ मोरे हाँथ
बटा गहाइबैं ह्वैहै

साइकिल के टायर कौं
डंडा तैं दूरि लौं चलात भए
दौरिबैं अहै- चौरी सड़क पै
संग संग ओ सखा
बदिबौ जई हतु
एक बेरि हमहिं सिसुताई मैं
बहोरि जाइबैं ह्वैहै।
-0-