भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नैनं छिदन्ति शस्त्राणि / सोमदत्त" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सोमदत्त |संग्रह=पुरखों के कोठार से / सोमदत्त }} <Poem...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:02, 24 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण
भूमैय्या किस्टैय्या गौड़ की याद में
माना की आवाज़ नहीं रही
माना कि झूल कर लटक गया जो सिर
वह अपनी निर्भयता से तुममें भय नहीं पैदा करेगा,
वह बाँह, जो सीधी तनकर संभालती थी
मरियल मानुसों और ताकतवर हथियार को एक से मोह से
बेजान हो गई और दूसरी, जो उसे सहारा देती थी
हर क़दम पर
लोथ हुई
वे पाँव जो तुम्हारी सारी मशीनरी की अश्वशक्ति से
भारी पड़ते थे
अपनी गति, अपनी ऊर्जा, अपने उपकरण होने में उस इरादे के
जिसकी वज़ह से हुआ ये सब
नाटक जिरह का
निर्णय के तराजू के पलड़े पर,
वह इरादा
मर कर भी इस इरादे के हर दुश्मन को मारता है
आप की ही गीता का वह श्लोक : नैनं छिदन्ति शस्त्राणि...