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स्त्री विमर्श के कंधों पर चढ़ | स्त्री विमर्श के कंधों पर चढ़ | ||
− | जायज़ है सम्पूर्ण पुरुष कुल की निंदा | + | जायज़ है सम्पूर्ण पुरुष कुल की निंदा; |
− | + | क्योंकि | |
स्त्री के दारुण दुखों का सोता | स्त्री के दारुण दुखों का सोता | ||
फूटा तो पुरुष के ही हाथों | फूटा तो पुरुष के ही हाथों | ||
परंतु क्या पुरुष के बिना | परंतु क्या पुरुष के बिना | ||
− | बनती थीं बालिकाएँ | + | बनती थीं बालिकाएँ लक्ष्मीबाइयाँ, |
− | + | इन्दिरागाँधियाँ या इन्दिरा नूइयाँ? | |
पुरुष के विरोध में लिखूँ? | पुरुष के विरोध में लिखूँ? | ||
जिस पिता के कंधों पर चढ़ मेले देखे | जिस पिता के कंधों पर चढ़ मेले देखे | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
सारी हठें मनवाईं | सारी हठें मनवाईं | ||
अपनी ससुराल विदाई के समय | अपनी ससुराल विदाई के समय | ||
− | जिसके भीतर के पुरुष पाषाण को | + | जिसके भीतर के पुरुष पाषाण को पिघलाकर |
आँखों से अविरल टपकवाया | आँखों से अविरल टपकवाया | ||
− | उस पिता को अन्यायी स्त्री विमर्श के कठघरे में खड़ा करूँ | + | उस पिता को अन्यायी स्त्री- विमर्श के कठघरे में खड़ा करूँ |
क्या न्याय होगा? | क्या न्याय होगा? | ||
जिन भाइयों ने समाज की हिंसक हवाओं में | जिन भाइयों ने समाज की हिंसक हवाओं में | ||
पंक्ति 29: | पंक्ति 29: | ||
जो पति दुष्कर दिनों और सम्मान बटोरने के क्षणों में | जो पति दुष्कर दिनों और सम्मान बटोरने के क्षणों में | ||
समरूप मेरे साथ रहा | समरूप मेरे साथ रहा | ||
− | कर दूँ | + | कर दूँ लहूलुहान उसका लंबा साहचर्य |
क्या न्याय होगा? | क्या न्याय होगा? | ||
जिस पुरुष पुत्र ने माँ जैसा स्वर्गिक सम्बोधन देकर | जिस पुरुष पुत्र ने माँ जैसा स्वर्गिक सम्बोधन देकर | ||
− | + | पाग दिया मुझे गौरव भरे मातृत्व की चाशनी में | |
स्नेह से रिक्त कर | स्नेह से रिक्त कर | ||
उसी पुरुष पुत्र की कोमल भावनाओं को बींध दूँ | उसी पुरुष पुत्र की कोमल भावनाओं को बींध दूँ | ||
− | स्त्री विमर्श के विष बुझे तीरों से | + | स्त्री- विमर्श के विष बुझे तीरों से |
क्या न्याय होगा? | क्या न्याय होगा? | ||
जो पुरुष नहीं था मेरा भाई, पिता या पुत्र भी, | जो पुरुष नहीं था मेरा भाई, पिता या पुत्र भी, | ||
− | जिसने लेट होती ट्रेन के | + | जिसने लेट होती ट्रेन के अँधेरे सफ़र में |
− | दिलाया था सुरक्षित होने का | + | दिलाया था सुरक्षित होने का एहसास |
भूलकर भलाई उसकी | भूलकर भलाई उसकी | ||
− | ठेल दूँ उसे स्त्री विमर्श की भारी भीत के पीछे | + | ठेल दूँ उसे स्त्री- विमर्श की भारी भीत के पीछे |
क्या न्याय होगा? | क्या न्याय होगा? | ||
जो देते हैं स्त्री को रुलाइयाँ | जो देते हैं स्त्री को रुलाइयाँ | ||
− | + | वे पुरुष नहीं परुष होते हैं | |
− | + | वे परुष भी नहीं शायद वे हिंसक पशु होते हैं | |
उन हिंसकों पर क्या लिखूँ? | उन हिंसकों पर क्या लिखूँ? | ||
और क्यों लिखूँ? | और क्यों लिखूँ? | ||
− | + | व्ह लिखने का नहीं | |
बाड़े में बंद कर भूल जाने का विषय होते हैं | बाड़े में बंद कर भूल जाने का विषय होते हैं | ||
पुरुष तो पिता है, पति है, पुत्र है | पुरुष तो पिता है, पति है, पुत्र है |
01:44, 19 नवम्बर 2024 के समय का अवतरण
स्त्री विमर्श के कंधों पर चढ़
जायज़ है सम्पूर्ण पुरुष कुल की निंदा;
क्योंकि
स्त्री के दारुण दुखों का सोता
फूटा तो पुरुष के ही हाथों
परंतु क्या पुरुष के बिना
बनती थीं बालिकाएँ लक्ष्मीबाइयाँ,
इन्दिरागाँधियाँ या इन्दिरा नूइयाँ?
पुरुष के विरोध में लिखूँ?
जिस पिता के कंधों पर चढ़ मेले देखे
उसकी अनिच्छा को इच्छा कर
सारी हठें मनवाईं
अपनी ससुराल विदाई के समय
जिसके भीतर के पुरुष पाषाण को पिघलाकर
आँखों से अविरल टपकवाया
उस पिता को अन्यायी स्त्री- विमर्श के कठघरे में खड़ा करूँ
क्या न्याय होगा?
जिन भाइयों ने समाज की हिंसक हवाओं में
कर्ण के जैसा सुरक्षा कवच दिया
उन्हीं में भर दूँ सारे जहाँ की बुराइयाँ
जो पति दुष्कर दिनों और सम्मान बटोरने के क्षणों में
समरूप मेरे साथ रहा
कर दूँ लहूलुहान उसका लंबा साहचर्य
क्या न्याय होगा?
जिस पुरुष पुत्र ने माँ जैसा स्वर्गिक सम्बोधन देकर
पाग दिया मुझे गौरव भरे मातृत्व की चाशनी में
स्नेह से रिक्त कर
उसी पुरुष पुत्र की कोमल भावनाओं को बींध दूँ
स्त्री- विमर्श के विष बुझे तीरों से
क्या न्याय होगा?
जो पुरुष नहीं था मेरा भाई, पिता या पुत्र भी,
जिसने लेट होती ट्रेन के अँधेरे सफ़र में
दिलाया था सुरक्षित होने का एहसास
भूलकर भलाई उसकी
ठेल दूँ उसे स्त्री- विमर्श की भारी भीत के पीछे
क्या न्याय होगा?
जो देते हैं स्त्री को रुलाइयाँ
वे पुरुष नहीं परुष होते हैं
वे परुष भी नहीं शायद वे हिंसक पशु होते हैं
उन हिंसकों पर क्या लिखूँ?
और क्यों लिखूँ?
व्ह लिखने का नहीं
बाड़े में बंद कर भूल जाने का विषय होते हैं
पुरुष तो पिता है, पति है, पुत्र है
ठीक वैसे ही जैसे
स्त्री माँ है, पत्नी है, पुत्री है।