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"अनुभूति-1 / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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'''तुम्हारे बिना'''
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कोई मिलता भी कैसे, चाहा नहीं किसी को।
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सिर्फ चाहा जब तुम्हें ही, समय पाखी बन उड़ा..।
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जाऊँगा कहाँ मैं तुम्हारे बिना
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रही तुम्हीं मंजिल रास्ता तुम्हीं हो!
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भीड़ और कोलहल, फिर भी अकेला मन
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कोई ना आया, याद तेरी आ गई!
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कैसे मैं तेरा दुःख बाँटूँ
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कैसे पाश दुःखों के काटूँ
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निशदिन सोचूँ राह ना पाऊँ
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पता नहीं किस द्वारे जाऊँ
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जिस पल सोचा ढंग से जी लें,
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तभी किसी ने पत्थर मारा।
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कौन पाप मैंने कर डाला
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सोच रहा है मन बेचारा।
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महलों की रौशनी भटकाती हैं उम्रभर!
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रह -रहकर हमें टपकता छप्पर याद आया।
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हो कितना भी अँधेरा, तुम्हें कभी रुकना नहीं है।
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सुख -दुःख मौसम समझ लो, बीत ही सभी जाएँगे
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हम तुम्हारे साथ हैं, तुम्हें पथ में रुकना नहीं है।
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29/7/2024
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तुम समुद्र हो न?
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कहाँ से आते हो?
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इतना सारा प्यार
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कहाँ से लाते हो!
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कुछ तो बोलो
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वाणी में वही मिश्री घोलो
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7/7/2024
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मैं तुम्हारी रूह  का ही एक हिस्सा हूँ  =23
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लघुकथा में ज्यों पिरोया एक किस्सा हूँ-23
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19-6-24
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पता नहीं कैसे हो त्राण?
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तुझमें अटके मेरे प्राण।
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12-6-24
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सूर्य का मैं रोक दूँ रथ
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बदल दूँ चाँद का भी पथ ।
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दिशा आँधी की उलट दूँ
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धार सागर की पलट दूँ।
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12-6-24
 
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04:43, 11 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण


तुम्हारे बिना
1
कोई मिलता भी कैसे, चाहा नहीं किसी को।
सिर्फ चाहा जब तुम्हें ही, समय पाखी बन उड़ा..।
2
जाऊँगा कहाँ मैं तुम्हारे बिना
रही तुम्हीं मंजिल रास्ता तुम्हीं हो!
20/10/24
3
भीड़ और कोलहल, फिर भी अकेला मन
कोई ना आया, याद तेरी आ गई!
12/10/24
4
कैसे मैं तेरा दुःख बाँटूँ
कैसे पाश दुःखों के काटूँ
निशदिन सोचूँ राह ना पाऊँ
पता नहीं किस द्वारे जाऊँ
12/9/2024
5
जिस पल सोचा ढंग से जी लें,
तभी किसी ने पत्थर मारा।
कौन पाप मैंने कर डाला
सोच रहा है मन बेचारा।
26/8/ 2024
6
6/8/ 2024
महलों की रौशनी भटकाती हैं उम्रभर!
रह -रहकर हमें टपकता छप्पर याद आया।
6/8/ 2024
7
हो कितना भी अँधेरा, तुम्हें कभी रुकना नहीं है।
सुख -दुःख मौसम समझ लो, बीत ही सभी जाएँगे
हम तुम्हारे साथ हैं, तुम्हें पथ में रुकना नहीं है।
29/7/2024
8
तुम समुद्र हो न?
कहाँ से आते हो?
इतना सारा प्यार
कहाँ से लाते हो!
कुछ तो बोलो
वाणी में वही मिश्री घोलो
7/7/2024
9
मैं तुम्हारी रूह का ही एक हिस्सा हूँ =23
लघुकथा में ज्यों पिरोया एक किस्सा हूँ-23
19-6-24
10
पता नहीं कैसे हो त्राण?
तुझमें अटके मेरे प्राण।
12-6-24
11
12-6-24
सूर्य का मैं रोक दूँ रथ
बदल दूँ चाँद का भी पथ ।
दिशा आँधी की उलट दूँ
धार सागर की पलट दूँ।
12-6-24