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"मसलहत खे़ज़ ये रियाकारी / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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− | मसलहत ख़ेज़ | + | मसलहत ख़ेज़ ये रियाकारी, |
− | ज़िन्दगानी की नाज़ | + | ज़िन्दगानी की नाज़ बरदारी। |
− | कै़सरी | + | कै़सरी तेरी मेरा दश्ते-नज्द, |
− | अपने-अपने जहाँ की | + | अपने-अपने जहाँ की सरदारी। |
− | कैसे नादाँ हो काट बैठे हो | + | कैसे नादाँ हो काट बैठे हो, |
− | एक ही रौ में ज़िन्दगी | + | एक ही रौ में ज़िन्दगी सारी। |
− | हो जो ईमाँ तो बैठता है मियाँ | + | हो जो ईमाँ तो बैठता है मियाँ, |
− | एक इन्साँ हज़ार पर | + | एक इन्साँ हज़ार पर भारी। |
− | कारोबारे जहाँ से घबराकर | + | कारोबारे जहाँ से घबराकर, |
− | कर रहा हूँ जुनूँ की | + | कर रहा हूँ जुनूँ की तैयारी। |
− | ज़हनो-दिल में चुभन सी रहती है | + | ज़हनो-दिल में चुभन सी रहती है, |
− | शायरी है अजीब | + | शायरी है अजीब बीमारी। |
− | मुस्कुरा क्या गई वो शोख़ अदा | + | मुस्कुरा क्या गई वो शोख़ अदा, |
− | दिल पे गोया चला | + | दिल पे गोया चला गई आरी। |
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13:30, 31 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण
मसलहत ख़ेज़ ये रियाकारी,
ज़िन्दगानी की नाज़ बरदारी।
कै़सरी तेरी मेरा दश्ते-नज्द,
अपने-अपने जहाँ की सरदारी।
कैसे नादाँ हो काट बैठे हो,
एक ही रौ में ज़िन्दगी सारी।
हो जो ईमाँ तो बैठता है मियाँ,
एक इन्साँ हज़ार पर भारी।
कारोबारे जहाँ से घबराकर,
कर रहा हूँ जुनूँ की तैयारी।
ज़हनो-दिल में चुभन सी रहती है,
शायरी है अजीब बीमारी।
मुस्कुरा क्या गई वो शोख़ अदा,
दिल पे गोया चला गई आरी।