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टूट-फूटकर पतन के गर्त में जा रही हो-- | टूट-फूटकर पतन के गर्त में जा रही हो-- |
00:11, 27 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण
क्या एक कविता
एक ऎसी दुनिया में
-- जो अपने में ही टूट-फूटकर
शायद पतन के गर्त में जा रही हो--
अब भी सरल रह सकती है?
क्या एक कविता
एक ऎसी दुनिया में
-- जो शायद पतन के गर्त में जा रही हो
अपने में ही टूट-फूटकर--
सरल के सिवा कुछ और हो सकती है?
क्या एक दुनिया
-- जो शायद अपने में ही
टूट-फूटकर पतन के गर्त में जा रही हो--
कविता पर हुक्म चला सकती है?
मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य