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19:13, 30 नवम्बर 2008 का अवतरण
जलते हुए सूरज से एक चिंगारी ले कर
मैंने भी अपने आंगन में आग जला ली है
इस आग में मुझे लगा देना है
तमाम पाए गए शब्दों और अर्थों का ईंधन
और इस चिंगारी को लपेट बना देना है
इस आग से कुछ आँच मिलेगी
आलोक का विश्वास जगेगा
हो जाएगी परख साथ ही
मेरे कुछ शब्दों और अर्थों की
और उनके संग किए
चेतन-अचेतन कर्मों की
झूठे शब्द-अर्थ जल जाएंगे
साँच की लौ और चमकेगी
शब्द पैदा होते, बातें करते और मर जाते हैं
अर्थों से अर्थों तक
एक प्रवाह चलता है
आज की अग्नि-परीक्षा में से
जो भी अर्थ जीवित निकलेगा
उसकी महिमा
मेरे अपने जन्म लेने वाले शब्द कहेंगे ।
मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद :