भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"माँ से बातें / आभा बोधिसत्त्व" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आभा बोधिसत्त्व |संग्रह= }} <Poem> माँ! चांद देखकर ख़ु...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:50, 5 दिसम्बर 2008 का अवतरण
माँ!
चांद देखकर ख़ुश होते हैं बच्चे
पर मुझे यह चांद न सुहाया
क्यों नहीं हुई ख़ुशी इसे देखकर
कभी भी
न आंगन के ताल में
न नदियों के जल में
न नम आँखों में
कहीं भी इसे देखकर ख़ुशी नहीं हुई।
ऎसा क्यों हुआ, माँ !
तुम बता सकती हो मुझे
क्योंकि मैंने सुना है
माँएँ समझती हैं
अपने बच्चों के मन को ठीक से।
क्यों न हो, माँ!
मुझे आन लो हमेशा के लिए
अपने पास
और तुम मुझे सुलाकर इस चांद को
हटा दो मेरे मन से
मैं भूल जाऊँ कि चांद होता ही नहीं ।
क्या ऎसा हो सकता है, माँ!