भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नसीब लोकतंत्र का / शिवकुटी लाल वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवकुटी लाल वर्मा |संग्रह= }} <Poem> कीलें बिल्कुल ठ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:57, 5 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण

कीलें बिल्कुल ठीक जड़ी गई हैं
एक कील मेरे सिर के बीचोंबीच जड़ी गई है
दो कीलें मेरी आँखों में
दो कीलें मेरी दोनों हथेलियों में
मेरे पीछे एक चिकना सलीब
मेरे पैरों में दो कीलें ठुकी हुई हैं
समझ में नहीं आता
कि मेरी जीभ में कील क्यों नहीं ठोंकी गई
लोकतन्त्र का नसीब
क्या धँसी हुई कीलों के बीच जीता है?