"सुरक्षित कमरे में भी जब वास्तविकता खोनी पड़े / वीरभद्र कार्कीढोली" के अवतरणों में अंतर
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19:31, 6 दिसम्बर 2008 का अवतरण
कैसे सुरक्षित कमरे में रखा है
तुम ने मुझे
उजाले के नाम पर
शीशे से छन कर उजाला
बिखरा पड़ा है मेरे चारों ओर।
कई बार सूरज देखने की कामना करता रहा
तुम से
सूरज के नाम पर
एक लाल दीया जला कर
कहते रहे तुम--
"देखो, यही है सूरज!"
रखा है सही,इतने सुन्दर कमरे में
तुम ने मुझे
सुंदरता केनाम पर
सजे पड़े हैं, मेरे चारों ओर
शीशे के फ़्रेम में खिले फूल!
आहा! कितना सुंदर है फूल का यह पौधा!
पर बेनाम...
न पत्ते हैं, न कलियाँ, न ही डालें हैं इसमें
प्राण और सुगंध न होते हुए भी
जब मैं सुंदरता की याद करता हूँ
एक ख़ुशबूदार लाल फूल
होता है मेरे सम्मुख--
पर वह तो मेरी यादों की मल्लिका नहीं है!
इन शीशे के दरवाज़ों और झरोखों पर
टंगे गहरे हरे पर्दों के चित्र
मेरे गाँव के खेत-खलिहान और पहाड़ तो नहीं है!
छोड़ो भी, मुझे नहीं चाहिए ऎसीसुंदरता
जब सुंदरता के नाम पर
वास्तविक सुंदरता ही खोनी पड़ी!
यह रंगीन उजाला
मेरी ज़िन्दगी का उजाला नहीं है
यह लाल दीया
जो मेरे सम्मुख जल रहा है
वह सूरज नहीं,जिसे मैं देखना चाहता है।
बुझा दो यह बिजली
मुझे उजाला नहीं चाहिए अब
जहाँ मुझे उजाले के नाम पर
वास्तविक उजाले को ही खोना पड़े!
मूल नेपाली से अनुवाद : खड़कराज गिरी