भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ग़लतफ़हमी / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण कमल |संग्रह= }} <Poem> उसने मुझे आदाब कहा और पूछा...)
(कोई अंतर नहीं)

22:13, 9 दिसम्बर 2008 का अवतरण


उसने मुझे आदाब कहा और पूछा अरे कहाँ रहे इतने रोज़
सुना आपके मामू का इंतकाल हो गया?

कौन? लगता है आपको कुछ...

आप वो ही तो जो रमना में रहते हैं इमली के पेड़ के पीछे?
नहीं, मैं...

अरे भई माफ़ कीजिए बिल्कुल वैसे ही दिखते हैं आप
वैसी ही शक्ल बाल वैसे ही सुफ़ेद और रंग भी...

कोई बात नहीं भाई हम तो चाहते हैं कि एक चेहरा दूसरे से
दूसरा तीसरे से मिले और फिर सब एक से लगें, सब में सब--
और हर बार हम सही से ज़्यादा ग़लत हों।