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04:22, 23 दिसम्बर 2008 का अवतरण


कई मंज़िला भवन के भीतर
एक साफ़ बड़े कमरे में
हीटर सेंकते लिख रहे होंगे आप
भूख के बारे में
जबकि आप बदहजमी का शिकार हैं

आप कल्पना करतें हैं एक झोंपडी
उसमें पति-पत्नी और
पाँच-छह बच्चों की
जिनके पास खाने को कुछ नहीं

उसी समय आपके किचन में
बजती है प्रेशर-कूकर की सीटी
देहरादून की भीनी खुशबू
आपका ख्याल तहस-नहस कर देती है

आप कमरे से बहार बालकनी में आ जाते हैं
और दूर-दूर तक नज़र आते हैं ऊँचे भवन
कहीं कोई भूखा नहीं दिखाई देता

वापिस अपने टेबल पर आकर
फाड़ देते हैं कविता का काग़ज़

अब आप एक नया विषय सोच रहे हैं
शायद यह कि बदहजमी कैसे दूर हो।