भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मेरी तरह एक तारा / सविता सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सविता सिंह |संग्रह= }} <Poem> मैंने अलग कर लिया था खुद ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:21, 27 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण
मैंने अलग कर लिया था खुद को
तभी जब समझ गई थी
करने पड़ेंगे कई पाप
पुण्य की तरह ही उसे पाने के लिए
जो मेरा इंतज़ार करता है
मेरे ही भीतर बैठ कर
चली गई थी उन विधवाओं के पास
जिन्हें सम्भोग वर्जित है
जिनके रेशमी स्तनों पर
नहीं पड़ता बाहर का कोई प्रकाश
मैं लौट सकने की हालत में नहीं थी वर्षों
मैंने काट लिए थे अपने हाथ
जिनसे स्पर्श कर सकती उस हृदय को
जिसमें मेरे लिए उद्दाम वासना थी
मेरी आँखों पर पड़े रहे
जाने कब तक
वे अजीब फूल
जो आँखों की ही तरह थे
उनसे रक्त टपकता था प्रेम का
जो फूल की तरह ही था
मैं अब भी चाहती हूँ उस तारे को
जो मेरी तरह है