"आगाही / विष्णु खरे" के अवतरणों में अंतर
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17:02, 27 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण
रात काफ़ी गुज़र जाने पर कहीं कोई जो कुत्ता रोने लगता है, दरअसल वह रोता नहीं होगा क्योंकि न तो उसके कराहने-सुबकने की आवाज़ आती है न ही उसके आँसू टपकने के कोई निशान मिलते हैं बस देखने वाले बताते हैं कि आसमान की तरफ मुँह उठा कर वह लगातार एक अजीब सुर निकालता है जो बेशक रात के बियाबान में भयावह लगता है जिससे सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और उन्हें अपने पर विपत्ति की तबाही की और मृत्यु तक की डरावनी कल्पनाएँ आने लगती हैं क्योंकि ऐसा खौफ़जदा विश्वास चला आता है कि कुत्ता ऐसा तभी करता है जब उसे कुछ ऐसा अपने आसपास आता दिखाई या सुनाई देता है या कोई पूर्वाभास हो जाता है जो आदमियों को नहीं होता और जो इस कुछ के बारे में भी डर कर बोलते हैं क्योंकि उनका संकेत प्रेतों-डायनों और मौत की तरफ़ रहता है और चूँकि अशुभ का नाम नहीं लिया जाना चाहिए - जैसे रात में लोग साँप को साँप नहीं कीड़ा कहते हैं - इसलिए वे सिर्फ़ इशारों में इशारे करते हैं जबकि किसी वैसे कुत्ते की तरफ़ से कभी ऐसा दावा नहीं किया गया है कि वह उस कुछ को देख लेता है वह तो वही करता है जिसे हम रोना कहते हैं और जिसे सुन कर उसके पास के दूसरे कुत्ते भौंकने लगते हैं साथ ही ऐसा शक होता है कि दूर से भी कहीं एक और वैसी ही रोने की आवाज़ सुनाई पड़ रही है फिर कुछ लोग हिम्मत करके खिड़की खोल उसे गालियाँ या चेतावनी भी देते हैं या पत्थर वगैरह फेंक कर उसे खदेड़ने-चुप करने की कोशिश करते हैं लेकिन वह कुछ दूर जाकर फिर वही करने करने लगता है यानी जिसे रोना कहा जाता है मगर बजाय इसके कि यह जानने की कोशिश की जाए कि वह निरी भूख से रोता है या सर्दी-गर्मी-बरसात से या किसी और तकलीफ़ या शिकायत से या वाकई उसे कोई गंध आती है या आहट किन्हीं बढ़ते आते सायों की आकारों की या कि वह याद कर रहा है बीते हुए को या आगाह जो घटित होने वाला है उसके बारे में सब यही चाहते हैं कि उसका यह रोज़-रोज़ का डरावना बेवक़्त रोना बंद हो किसी तरह वरना वे अपने सिखाए हुए घरेलू पहरेदार जानवरों को इकट्ठा उस पर छुड़वा देंगे या उसे पिंजरे में पकड़वा कर भिजवा देंगे या ज़हर दिलवा देंगे या रेबीस है कह कर गोली से मरवा देंगे।