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"अकेला पानी / ध्रुव शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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अपने ही अथाह में
खोजता है अकेला पानी
छिपने की जगह रेत में
रेत नहीं छिपाती उसे
ठेलती रहती है गहराई की ओर
रेत से पानी
पानी से रेत
मिल रहे हैं ऐसे ही
न जाने कब से इसी तरह
बचाए हुए अपना प्रेम