भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पौधे की किलकारियाँ / अर्चना भैंसारे" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना भैंसारे |संग्रह= }} <Poem> सारी रात पिछवाड़े ...)
(कोई अंतर नहीं)

21:47, 30 दिसम्बर 2008 का अवतरण

सारी रात पिछवाड़े की
ज़मीन कराहती रही
लेती रही करवटें

उसकी चिन्ता में
सोया नहीं घर
होता रहा अंदर-बाहर

और अगले ही दिन
पहले-पहल सूरज की किरणें
दौड़ पड़ी चिड़ियों के सहगान में
जच्चा गातीं

उसकी गोद में मचलते
पौधे की किलकारियाँ सुन...!