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"पौधे की किलकारियाँ / अर्चना भैंसारे" के अवतरणों में अंतर
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21:47, 30 दिसम्बर 2008 का अवतरण
सारी रात पिछवाड़े की
ज़मीन कराहती रही
लेती रही करवटें
उसकी चिन्ता में
सोया नहीं घर
होता रहा अंदर-बाहर
और अगले ही दिन
पहले-पहल सूरज की किरणें
दौड़ पड़ी चिड़ियों के सहगान में
जच्चा गातीं
उसकी गोद में मचलते
पौधे की किलकारियाँ सुन...!