भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वह पीड़ा / प्रेमलता वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता वर्मा |संग्रह= }} <Poem> राष्ट्र है वह पीड़...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:06, 30 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण
राष्ट्र है वह पीड़ा जिससे
रोना नहीं सीखतीं हमारी आँखें
धुएँ के नीचे महामंडित, रूपवान
नदी तट पर जलसमाधि लेने को मज़बूर
लहरें- समुद्र के पके केश
लहराते रहते हैं अपने तर्क पर
जब बाहरी दुनिया यानी सभा
छोड़ देती अपनी पतंग, ढोल पीट
बहरी दूरियों में...।
इस बीच आम लोग हिलाते रहे
देश का राष्ट्रीय झंडा
भक्ति-भाव से शहीदों को याद कर।
और देवताओं के चेहरे पर फिसलती रहती हैं
हमारी प्रार्थनाएँ...