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"कई बरस पहले / प्रयाग शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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एक बहुत पुराने काले  
 
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संदूक पर
 
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बैठी हुई स्त्री वह--
 
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माँ थी मेरी ।
 
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एक लड़के के घर से
 
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दूसरे लड़के के घर जाती हुई ।
 
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दूर से देखता था मैं
 
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संदूक को
 
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कभी मेरे भी कपड़े
 
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इसमें, बचपन के ।
 
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18:07, 1 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

एक बहुत पुराने काले
संदूक पर
बैठी हुई स्त्री वह--
माँ थी मेरी ।

एक लड़के के घर से
दूसरे लड़के के घर जाती हुई ।

दूर से देखता था मैं
संदूक को
रहते होंगे
कभी मेरे भी कपड़े
इसमें, बचपन के ।