भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जाओ / प्रयाग शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रयाग शुक्ल |संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल }} 'जाओ' ...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल
 
|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल
 
}}
 
}}
 
+
<Poem>
 
+
 
'जाओ'
 
'जाओ'
 
 
मैं ने कहा
 
मैं ने कहा
 
 
'जाओ'
 
'जाओ'
 
  
 
शायद ये उम्र के आख़िरी बरस हैं ।
 
शायद ये उम्र के आख़िरी बरस हैं ।
 
 
अब थक गया हूँ मैं--
 
अब थक गया हूँ मैं--
 
 
करते तुम्हारी याद
 
करते तुम्हारी याद
 
 
रोज़ रोज़ ।
 
रोज़ रोज़ ।
 
  
 
फिर दिन गया है डूब ।
 
फिर दिन गया है डूब ।
 +
</poem>

18:14, 1 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

'जाओ'
मैं ने कहा
'जाओ'

शायद ये उम्र के आख़िरी बरस हैं ।
अब थक गया हूँ मैं--
करते तुम्हारी याद
रोज़ रोज़ ।

फिर दिन गया है डूब ।