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"यात्रा (छह) / शरद बिलौरे" के अवतरणों में अंतर

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03:03, 4 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

रेल में चढ़ते हुए
अपने सामान के बारे में हम
उतने ही सतर्क होते हैं
जितने कि
बस में चढ़ते हुए
खिड़की के पास वाली सीट के बारे में।
जितने कि
विदा के समय
हाथ हिलाने के बारे में।
जितने कि हम
यात्रा समाप्त करने पर
सतर्क होते हैं।
सपनों के उस संसार के बारे में
हम कभी सतर्क नहीं होते
जहाँ हमें
भावी डर के बारे में सतर्क करते हुए
ले जाती हैं
रेलें
बसें
और मित्रताएँ।